ट्रैफिक के शोर से सामान्य से अधिक तेजी से बढ़ने लगी है पक्षी की उम्र

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बर्लिन, प्रेट्र। वाहनों की संख्या दुनिया भर में बढ़ती जा रही है और इसी के साथ प्रदूषण भी। यह कई तरीके से इंसानों के लिए नुकसानदेह बनता जा रहा है, लेकिन क्या आपने सोचा है कि इससे पक्षी भी प्रभावित हो रहे हैं। एक नवीन अध्ययन में सामने आया है कि ट्रैफिक के शोर से पक्षियों की उम्र सामान्य से अधिक तेजी से बढ़ने लगती है। इससे वे जल्दी बूढ़े होते हैं। अध्ययन में यह भी बताया गया है कि ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में शहरी इलाकों में पक्षियों पर अधिक प्रभाव पड़ता है।

जर्मनी के पक्षी विज्ञान के मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट और अमेरिका स्थित नॉर्थ डकोटा स्टेट यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने यह अध्ययन किया। उन्होंने मुख्यत: ऑस्ट्रेलिया में पाई जाने वाली जेब्रा फिंच पर शोर के प्रभाव को जाना। इसमें उनके टेलोमेर की लंबाई पर असर दिखाई दिया। टेलोमेर क्रोमोजोम्स के सिरों पर पाया जाता है जो जींस की हिफाजत करता है। अध्ययन में सामने आया कि ट्रैफिक के शोर से टेलोमेर की लंबाई कम होने में तेजी आती है। शोधकर्ताओं के मुताबिक, जेब्रा फिंच को गाड़ियों के शोर के बीच रखा गया तो इस पक्षी ने मात्र 120 दिन में ही अपना घोसला छोड़ दिया। घोसला छोड़ने के बाद उनमें टेलोमेर की लंबाई में कमी पाई गई।

यह अध्ययन फ्रंटियर्स इन जूलॉजी नामक जर्नल में प्रकाशित किया गया है। इस शोध में शामिल डॉक्टर एड्रियाना डोराडो-कोर्रिया के मुताबिक, यह अध्ययन स्पष्ट करता है कि शहरों में होने वाला शोर, रोशनी और रासायनिक प्रदूषण जेब्रा फिंज की आयु तेजी से बढ़ाता है। उन्होंने बताया कि इस पक्षी के अंडे देने के बाद 120 दिन काफी महत्वपूर्ण होते हैं। इस दौरान यह चिड़िया गाड़ियों के शोर से सबसे अधिक प्रभावित होती हैं, जबकि यह अवधि इस पक्षी के लिए काफी अधिक महत्वपूर्ण होती है। इस दौरान यह चिड़िया गाना गाना सीखती है। ऐसे समय में यह चिड़िया आवाजों के प्रति बेहद संवेदनशील होती है। ऐसे में शोर के कारण उसका जीवन प्रभावित होता है।

पिछले अध्ययनों में पाया गया है कि उद्योगों या ट्रैफिक से होने वाले ध्वनि प्रदूषण से इस चिड़िया का गाने का तरीका बदल जाता है। इससे इस चिड़िया के लिए अपने मेल साथी को आकर्षित करना और अपने इलाके को बचाना मुश्किल हो जाता है। वर्ष 2016 में हुए एक अध्ययन में पाया गया था कि ट्रैफिक से होने वाले ध्वनि प्रदूषण के चलते चिड़ियों के लिए अपने साथियों द्वारा दी गई खतरे की चेतावनी को समझ पाना भी मुश्किल हो जाता है।

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